कविता-: नारी: शक्ति बनाम शोषण
यत्र नारी पूज्यंते से सुशोभित हो रहे हैं।
हम हैं नारीशक्ति पर फिर भी तो शोषित हो रहे हैं।।
हम हैं नारीशक्ति पर फिर भी तो शोषित हो रहे हैं।।
बेर में शबरी के हम हैं, माता सीता के नयन हम,
गार्गी के प्रश्न हम हैं, मीराबाई के भजन हम।
त्याग पन्नाधाय का हम, शौर्य में झांसी की रानी,
हम ही मां की लोरियां, हम दादी_नानी की कहानी।खेलों में हम सानिया हैं, और लता के गीत में हम,
हम बहन की राखियों में, राधिका की प्रीत में हम।
नासा में हम कल्पना, अभिनय में हम मीना कुमारी,
हमसे ही ब्रह्मांड सारा, हमसे ही सृष्टि है सारी। (२)
सब किया फिर भी तो अबला नारी घोषित हो रहे हैं।
हम हैं नारीशक्ति पर फिर भी तो शोषित हो रहे हैं।।
हम जुए की हार में हैं, और हम अग्नि परीक्षा,
हम हैं चूल्हे के धुएं में, और हमसे दूर शिक्षा।
है अपहरण आम अपना, और कहीं पर भ्रूण हत्या,
हो कहीं दुष्कर्म अपना, और करें हम आत्महत्या।
हम दहेजों की हैं पीड़ा, हिंसा की हर चीख में हम,
हर किसी के प्रश्न हमसे, हर किसी की सीख में हम।
देह अपना बेचते हम, घर चलाना हो जो अपना,
हम सभी की गालियों में, फिर कहो है कौन अपना। (२)
हों कोई हम वस्तु जैसे ऐसे पोषित हो रहे हैं।
हम हैं नारीशक्ति पर फिर भी तो शोषित हो रहे हैं।।
फिर भी तो शोषित हो रहे हैं.......
~प्रखर श्रीवास्तव
सब किया फिर भी तो अबला नारी घोषित हो रहे हैं।
हम हैं नारीशक्ति पर फिर भी तो शोषित हो रहे हैं।।
हम जुए की हार में हैं, और हम अग्नि परीक्षा,
हम हैं चूल्हे के धुएं में, और हमसे दूर शिक्षा।
है अपहरण आम अपना, और कहीं पर भ्रूण हत्या,
हो कहीं दुष्कर्म अपना, और करें हम आत्महत्या।
हम दहेजों की हैं पीड़ा, हिंसा की हर चीख में हम,
हर किसी के प्रश्न हमसे, हर किसी की सीख में हम।
देह अपना बेचते हम, घर चलाना हो जो अपना,
हम सभी की गालियों में, फिर कहो है कौन अपना। (२)
हों कोई हम वस्तु जैसे ऐसे पोषित हो रहे हैं।
हम हैं नारीशक्ति पर फिर भी तो शोषित हो रहे हैं।।
फिर भी तो शोषित हो रहे हैं.......
~प्रखर श्रीवास्तव
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